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Monday 10 December 2012

India's monuments, caves, castles, temples


भारत के स्‍मारक, गुफाएं, किले, मंदिर 

आगरे का किला

ताजमहल के उद्यानों के पास महत्‍वपूर्ण 16 वीं शताब्‍दी का मुगल स्‍मारक है, जिसे आगरे का लाल किला कहते हैं। यह शक्तिशाली किला लाल सैंड स्‍टोन से बना है और 2.5 किलोमीटर लम्‍बी दीवार से घिरा हुआ है, यह मुगल शासकों का शाही शहर कहा जाता है। इस किले की बाहरी मजबूत दीवारें अंदर एक स्‍वर्ग को छुपाए हुए हैं। इसमें अनेक विशिष्‍ट भवन हैं जैसे मोती मस्जिद - सफेद संगमरमर से बनी एक मस्जिद, जो एक त्रुटि रहित मोती जैसी है; दीवान ए आम, दीवान ए खास, मुसम्‍मन बुर्ज - जहां मुगल शासक शाह जहां की मौत 1666 ए. डी. में हुई, जहांगीर का महल और खास महल तथा शीश महल। आगरे का किला मुगल वास्‍तुकला का उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है, यह भारत में यूनेस्‍को के विश्‍व विरासत स्‍थलों में से एक है।
आगरे के किले का निर्माण 1656 के आस पास शुरु हुआ, जब आरंभिक संरचना मुगल बादशाह अकबर ने निर्मित कराई, इसके बाद का कार्य उनके पोते शाह जहां ने कराया, जिन्‍होंने किले में सबसे अधिक संगमरमर लगवाया। यह किला अर्ध चंद्राकार, पूर्व दिशा में चपटा है और इसकी एक सीधी, लम्‍बी दीवार नदी की ओर जाती है। इस पर लाल सैंड स्‍टोन के दोहरे प्राचीर बने हैं, जिन पर नियमित अंतराल के बाद बेस्‍टन बनाए गए है। बाहरी दीवार के आस पास 9 मीटर चौड़ी मोट है। एक आगे बढ़ती 22 मीटर ऊंची अंदरुनी दीवार अपराजेय प्रतीत होती है। किले की रूपरेखा नदी के प्रवाह की दिशा में निर्धारित होती है, जो उन दिनों इसके बगल से बहती थी। इस का मुख्‍य अक्ष नदी के समानान्‍तर है और दीवारें शहर की ओर हैं।
इस किले में मूलत: चार प्रवेश द्वार थे, जिनमें से दो को आगे चलकर बंद कर दिया गया। आज दर्शकों को अमर सिंह गेट से प्रवेश करने की अनुमति है। जहांगीर महल पहला उल्‍लेखनीय भवन है जो अमर सिंह प्रवेश द्वार से आने पर अतिथि सबसे पहले देखते हैं। जहांगीर अकबर का बेटा था और वह मुगल सिंहासन का उत्तराधिकारी भी था। जहांगीर महल का निर्माण अकबर ने महिलाओं के लिए कराया था। यह पत्‍थरों का बना हुआ है और इसकी बाहरी सजावट सादगी वाली है। पत्‍थर के बड़े बाउल पर सजावटी पर्शियन पच्‍चीकारी की गई है, जो संभवतया सुगंधित गुलाब जल को रखने के लिए बनाया गया था। अकबर ने जहांगीर महल के पास अपनी मनपसंद रानी जोधा बाई के लिए एक महल का निर्माण भी कराया था।
शाहजहां द्वार निर्मित पूरी तरह से संगमरमर का बना हुआ खास महल विशिष्‍ट इस्‍लामिक - पर्शियन विशेषताओं का प्रदर्शन करता है। इनके साथ हिन्‍दु विशेषताओं की एक अद्भुत श्रृंखला भी मिश्रित की गई है जैसे कि छतरियां। इसे बादशाह का सोने का कमरा या आरामगाह माना जाता है। खास महल में सफेद संगमरमर की सतह पर चित्र कला का सबसे सफल उदाहरण दिया गया है। खास महल की बांईं ओर मुसम्‍मन बुर्ज है जिसका निर्माण शाहजहां ने कराया था। यह सुंदर अष्‍टभुजी स्‍तंभ एक खुले मंडप के साथ है। इसका खुलापन, ऊंचाइयां और शाम की ठण्‍डी हवाएं इसकी कहानी कहती है। यही वह स्‍थान है जहां शाहजहां ने ताज को निहारते हुए अंतिम सांसें ली थी।
शीश महल या कांच का बना हुआ महल हमाम के अंदर सजावटी पानी की अभियांत्रिकी का उत्‍कृ‍ष्‍टतम उदाहरण है। ऐसा माना जाता है कि हरेम या कपड़े पहनने का कक्ष और इसकी दीवारों में छोटे छोटे शीशे लगाए गए थे जो भारत में कांच मोजेक की सजावट का सबसे अच्‍छा नमूना है। शाह महल के दांईं ओर दीवान ए खास है, जो निजी श्रोताओं के लिए है। यहां बने संगमरमर के खम्‍भों में सजावटी फूलों के पैटर्न पर अर्ध कीमती पत्‍थर लगाए गए हैं। इसके पास मम्‍मम ए शाही या शाह बुर्ज को गरमी के मौसम में उपयोग किया जाता था।
दीवान ए आम का उपयोग प्रसिद्ध मयूर सिंहासन को रखने में किया जाता था, जिसे शाहजहां द्वारा दिल्‍ली राजधानी ले जाने पर इसे लालकिले में ले जाया गया। यह सिंहासन सफेद संगमरमर से बना हुआ उत्‍कृष्‍ट कला का नमूना है। नगीना मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने कराया था, जो दरबार की महिलाओं के लिए एक निजी मस्जिद थी। मोती मस्जिद आगरा किले की सबसे सुंदर रचना है। यह भवन वर्तमान में दर्शकों के लिए बंद किया गया है। मोती मस्जिद के पास मीना मस्जिद है, जिसे शाहजहां ने केवल अपने निजी उपयोग के लिए निर्मित कराया था।

अजंता और ऐल्‍लोरा गुफाएं



दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए अजंता तथा एलोरा की गुफाओं में बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला पाई जाती है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट अनमोल समय को दर्शाती है। बौद्ध तथा जैन सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं।

Friday 7 December 2012

Census of India 2011

IAS RAS Essay Test

भारत की जनगणना 2011

भारत की जनगणना, 2011
सन 1872 से ही जनगणना, नागरिकों से संबंधित विभिन्न विशेषताओं एवं सांख्यिकीय सूचना का विश्वसनीय स्रोत रहा है। यह देश के अलग-अलग प्रांतों में भिन्न-भिन्न समय पर किया गया था। वर्ष 1881 में एक जनगणना पूरे देश के लिए एक साथ की गई थी। तब से हर दस साल में यह जनगणना बिना किसी व्यावधान के आयोजित की जाती है। यह तय समय पर देश की जनसंख्या और आवास का एक खाका बनाने में मदद करता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत महा पंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय प्रत्येक दस वर्ष के बाद देश में जनगणना कराने के लिए एक नोडल प्राधिकरण है। 2011 की जनगणना 1872 के बाद से देश की 15वीं राष्ट्रीय जनगणना और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 7वीं जनगणना है।


Wednesday 5 December 2012

History of the Central Pay Commissions in india


केंद्रीय वेतन आयोगों का इतिहास

वर्तमान नियमों में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग के गठन के लिए कोई विशिष्‍ट समया‍वधि निर्धारित नहीं की गई है। अब तक पांच केंद्रीय वेतन आयोग गठित किए जा चुके हैं।
केंद्रीय वेतन आयोग
वेतन आयोग नियुक्ति की तिथि रिपोर्ट के प्रस्‍तुतिकरण की तिथि
प्रथम वेतन आयोग मई, 1946 मई, 1947
द्वितीय वेतन आयोग अगस्‍त, 1957 अगस्‍त, 1959
तृतीय वेतन आयोग अप्रैल, 1970 मार्च, 1973
चतुर्थ वेतन आयोग जून, 1983 तीन रिपोर्टें क्रमश: जून 1986, दिसम्‍बर 1986 तथा मई 1987 में प्रस्‍तुत की गई।
पांचवा वेतन आयोग अप्रैल, 1994 जनवरी, 1997


नई दिल्‍ली 5 अक्‍तूबर 2006 
भारत सरकार  छठा केंद्रीय वेतन आयोग नियुक्‍त
क्र.सं. पद नाम
1 अध्‍यक्ष श्री जस्टिस बी एन श्रीकृष्‍ण
2 सदस्‍य प्रो. रविंद्र ढोलकिया
3 सदस्‍य श्री जे एस माथुर
4 सदस्‍य सचिव सुश्री सुषमा नाथ

इस प्रकार क्रमिक केंद्रीय वेतन आयोगों का गठन विगत में 10 से 13 वर्षों के अंतराल पर किया गया था। इन वेतन आयोगों ने विभिन्‍न मुद्दों की जांच की जैसे वेतन एवं भत्‍ते, सेवानि‍वृत्ति लाभ, सेवा शर्तें, पदोन्‍नति नीतियां इत्‍यादि तथा उन पर अनुशंसाएं प्रस्‍तुत की।

India's Nobel Prize winners


भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता

India's Nobel Prize winners

अमर्त्य सेन (जन्मः 1933): अर्थशास्त्र के लिए 1998 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रोफेसर अमर्त्य सेन पहले एशियाई हैं। शांतिनिकेतन में जन्मे इस विद्वान अर्थशास्त्री ने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है। उन्होंने कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक पुस्तकें तथा पर्चे लिखे हैं। प्रोफेसर सेन आम अर्थशास्त्रियों के समान नहीं हैं। वह अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ, एक मानववादी भी हैं। उन्होंने, अकाल, गरीबी, लोकतंत्र, स्त्री-पुरुष असमानता और सामाजिक मुद्दों पर जो पुस्तकें लिखी हैं, वे अपने-आप में बेजोड़ हैं। केनेथ ऐरो नाम के एक अर्थशास्त्री ने असंभाव्यता सिद्धांत नाम की अपनी खोज में कहा था कि व्यक्तियों की अलग-अलग पसंद को मिलाकर समूचे समाज के लिए किसी एक संतोषजनक पसंद का निर्धारण करना संभव नहीं है। प्रोफेसर सेन ने गणितीय आधार पर यह सिद्ध किया है कि समजा इस तरह के नतीजों के असर को करने के उपाय ढूंढ सकता है।



सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर(1910-1995): सन 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर खगोल भौतिक शास्त्री थे। उनकी शिक्षा चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। वह नोबेल पुरस्कार विजेतर सर सी.वी. रमन के भतीजे थे। बाद में चंद्रशेखर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने खगोल भौतिक शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। उन्होंने ‘व्हाइट ड्वार्फ’ यानी श्वेत बौने नाम के नक्षत्रों के बारे में सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन नक्षत्रों के लिए उन्होंने जो सीमा निर्धारित की है, उसे चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है। उनके सिद्धांत से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में अनेक रहस्यों का पता चला।


मदर टेरेसा (1910-1997): मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। मदर का जन्म अल्बानिया में स्कोपजे नामक स्थान पर हुआ था, जो अब यूगोस्लाविया में है। उनका बचपन का नाम एग्नस गोंक्सहा बोजाक्सिऊ था। सन 1928 में वह आयरलैंड की संस्था सिस्टर्स आफ लोरेटो में शामिल हुईं और मिशनरी बनकर 1929 में कोलकाता आ गईं। उन्होंने बेसहारा और बेघरबार लोगों के दुख दूर करने का महान व्रत लिया। निर्धनों और बीमार लोगों की सेवा के लिए उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी नाम की संस्था बनाई और कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार बने लोगों तथा दीन-दुखियों के लिए निर्मल हृदय नाम की संस्था बनाई। यह संस्था उनकी गतिविधियों का केंद्र बनी। उन्होंने पूरी निष्ठा से न सिर्फ बेसहारा लोगों की निःस्वार्थ सेवा की, बल्कि विश्व शांति के लिए भी प्रयास जारी रखे। उन्हीं की बदौलत भारत शांति के लिए अपने एक नागरिक द्वारा नोबेल प्राप्त करने का गौरव प्राप्त कर सका है।


हरगोबिंद खुराना (जन्म 1922): हरगोबिंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। भारतीय मूल के डॉ. खुराना का जन्म पंजाब में रायपुर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में डाक्टरेट की डिग्री ली। सन 1960 में वह विस्कौसिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने। उन्होंने अपनी खोज से आनुवांशिक कोड की व्याख्या की और प्रोटीन संश्लेषण में इसकी भूमिका का पता लगाया।


चंद्रशेखर वेंकटरमन (1888-1970): भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय डॉ. C थे। उन्हें 1930 में यह पुरस्कार प्राप्त हुआ। रमन का जन्म तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली के पास तिरुवाइक्कावल में हुआ था। उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। बाद में वह कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर बने। चंद्रशेखर वेंकटरमन ने अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए। उन्हें ‘सर’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया और प्रकाशकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने अपने अनुसंधान में इस बात का पता लगाया कि किस तरह अपसरित प्रकाश में अन्य तरंग, लंबाई की किरणें भी मौजूद रहती हैं। उनकी खोज को रमन प्रभाव के नाम से भी जाना जाता है। सन 1928 में की गई इस खोज से पारदर्शी माध्यम से होकर गुजरने वाली प्रकाश किरणों में आवृत्ति परिवर्तन की व्याख्या की गई है


रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1943): रवींद्रनाथ ठाकुर, साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे। ‘गुरुदेव’ के नाम से प्रसिद्ध रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में हुआ। उन्हें उनकी कविताओं की पुस्तक गीतांजलि के लिए 1913 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक प्रेमगीत भी लिखे हैं। गीतांजलि और साधना उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। महान कवि, नाटककार और उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध ‘गुरुदेव’ ने भारत के राष्ट्र गान का भी प्रणयन किया। सन 1901 में उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

IAS ESSAY (NDSP-National Data Sharing and Accessibility Policy)

IAS ESSAY 2013 new pattern

विकास के लिए आंकड़ा : राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति (NDSP-National Data Sharing and Accessibility Policy)

विकास के लिए आंकड़ा : राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति (एनडीएसएपी)

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"आर्थिक निर्णय लेने के लिए ही भरोसेमंद डेटा अनिवार्य नहीं हैं। लोक तांत्रिक सरकारों पर नीतियों को बताने के लिए सूचना को सचेत रूप से प्रोत्‍साहन देने का दायित्‍व है, ताकि सूचना व्‍यापक रूप से उपलब्‍ध हो सके। इन नीतियों द्वारा सूचना रखने वालों और सूचना नहीं रखने वालों के बीच का अंतर समाप्‍त होना चाहिए। हमारी सरकार ने एक सार्वजनिक मद के रूप में सूचना को बांटने का प्रयास किया है।"
- डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के प्रधानमंत्री, 09 सितंबर 2008
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अब इसे भली भांति समझा गया है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा दिए गए डेटा एक मूल्‍यवान और ऐसी परिसंपत्ति है जिनका स्‍थान कोई नहीं ले सकता, इनका प्रबंधन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि इनका सबसे व्‍यापक संभव उपयोग और पुन: उपयोग किया जा सके। भरोसेमंद और समय पर प्राप्‍त डेटा का प्रावधान जनता के लिए मूल भूत अवसंरचना के प्रावधान के साथ सरकार का एक महत्‍वपूर्ण दायित्‍व है। इस सीमा तक डेटा को एक सार्वजनिक वस्‍तु के रूप में लिया जा सकता है। आधुनिकी सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा नागरिकों को सार्वजनिक डोमेन में उपलब्‍ध कराएं गए इन डेटा तक आसानी तक पहुंच में सक्षम बनाने के अलावा सार्वजनिक कार्यों में पार‍दर्शिता की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया है।


सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण के तहत सूचना तक सुरक्षित पहुंच के लिए नागरिकों को सशक्‍त बनाने हेतु सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005  के प्रावधानों तथा सरकारी सुधारों में संलग्‍न नागरिकों पर सरकार द्वारा दिए गए बल को ध्‍यान में रखते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय आंकड़ा भागिता और अभिगम्यता नीति (एनडीएसएपी)  अपनाई है। इस राष्‍ट्रीय नीति को मार्च 2012 में अधिसूचित किया गया, जिससे डेटा के प्रयोक्‍ताओं के बीच गैर संवेदनशील डेटा की पहुंच तथा आसानी से आदान प्रदान में वृद्धि होगी और ये वैज्ञानिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास प्रयोजनों के लिए उपलब्‍ध हो सकेंगे।

  • एनडीएसएपी क्‍यों?
  • एनडीएसएपी के उद्देश्‍य
  • डेटा के स्रोत
  • एनडीएसएपी के लाभ
  • डेटा का वर्गीकरण
  • डेटा पहुंच
  • डेटा पर किसका अधिकार होगा?
  • वैश्विक परिदृश्‍य
  • भारत के डेटा पोर्टल 

National Honor of India-Bharat Ratna Award

National Honor of India-Bharat Ratna Award and winners

भारत रत्‍न सम्‍मान

भारत में अन्‍नत काल से बहादुरी की अनेक गाथाओं को जन्‍म दिया है। संभवत: उनके बलिदानों को मापने का कोई पैमाना नहीं है, यद्यपि हम उन लोगों से भी अपनी आंखें फेर नहीं सकते जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्‍कृ‍ष्‍टता प्राप्‍त कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया है और हमें अंतरराष्‍ट्रीय मान्‍यता दिलाई है। भारत रत्‍न हमारे देश का उच्‍चतम नागरिक सम्‍मान है , जो कला, साहित्‍य और विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण सेवा के लिए तथा उच्‍चतम स्‍तर की लोक सेवा को मान्‍यता देने के लिए प्रदान किया जाता है।
इस पुरस्‍कार के रूप में दिए जाने वाले सम्‍मान की मूल विशिष्टि में 35 मिलिमीटर व्‍यास वाला गोलाकार स्‍वर्ण पदक, जिस पर सूर्य और ऊपर हिन्‍दी भाषा में ''भारत रत्‍न'' तथा नीचे एक फूलों का गुलदस्‍ता बना होता है पीछे की ओर शासकीय संकेत और आदर्श-वाक्‍य लिखा होता है। इसे सफेद फीते में डालकर गले में पहनाया जाता है। एक वर्ष बाद इस डिजाइन को बदल दिया गया था।

भारत रत्‍न पुरस्‍कार

India's National Day

India's National Day

राष्‍ट्रीय दिवस

                                                 FREEDOM DAY                                                                                    

                                स्‍वतंत्रता दिवस                                                  


भारत का स्‍वतंत्रता दिवस, जिसे हर वर्ष 15 अगस्‍त को देश भर में हर्ष उल्‍लास के साथ मनाया जाता है, इसमें अनेक राष्‍ट्रीय दिवसों की खुशी शामिल है, क्‍योंकि यह प्रत्‍येक भारतीय को एक नई शुरूआत की याद दिलाता है, 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूट कर एक नए युग की शुरूआत हुई थी। वह 15 अगस्‍त 1947 का भाग्‍यशाली दिन था जब भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्‍वतंत्र घोषित किया गया और नियंत्रण की बाग डोर देश के नेताओं को सौंप दी गई। भारतीय द्वारा आजादी पाना उसका भाग्‍य था, क्‍योंकि स्‍वतंत्रता संघर्ष काफी लम्‍बे समय चला और यह एक थका देने वाला अनुभव था, जिसमें अनेक स्‍वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन कुर्बान कर दिए।


Republic day

गणतंत्र दिवस

Tuesday 4 December 2012

River water dispute in india


                        नदी जल विवाद

अंतर्राज्‍यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के अंतर्गत जब दो या दो से अधिक राज्‍य सरकारों के बीच जल विवाद पैदा होता है तो अधिनियम की धारा 3 के तहत कोई भी नदी घाटी राज्‍य केंद्र सरकार को इस संबंध में अनुरोध भेज सकता है। अधिनियम के अंतर्गत ऐसे अंतर्राज्‍यीय जल विवादों की स्थिति इस प्रकार है:
अन्तर्राज्यीय अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल विवाद
नदी/नदियां राज्‍य पंचाट के गठन की तिथि निर्णय की तिथि
कृष्णा महाराष्‍ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक अप्रैल 1969 मई 1976
गोदावरी महाराष्‍ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्‍यप्रदेश, ओडिशा अप्रैल 1969 जुलाई 1980
नर्मदा राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, गुजरात, महाराष्‍ट्र अक्‍टूबर 1969 दिसंबर 1979
कावेरी केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी जून 1990 धारा 5(2) के अंतर्गत रिपोर्ट प्राप्‍त संबंधित राज्‍यों और केंद्र सरकार द्वारा धारा 5(3) के अंतर्गत याचिकाएं प्रस्‍तुत। रिपोर्ट प्रतिशितिक
कृष्‍णा महाराष्‍ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक अप्रैल 2004 धारा 5(2) कें अंतर्गत रिपोर्ट लंबित
मदेई/मण्‍डोवी/महादयी गोवा, कर्नाटक और महाराष्‍ट्र निर्माणाधीन -
वन्‍सधारा आंध्र प्रदेश और ओडिशा निर्माणाधीन -

उक्‍त अधिनियम के अंतर्गत, विवाद को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता इसके प्रति संतुष्‍ट होने की स्थिति में केंद्र सरकार उस विवाद को एक पचांट को सौंप सकती है। तदनुसार, कावेरी और कृष्‍णा से संबंधित जल विवाद क्रमश: 1990 और 2004 में फैसले के लिए पंचाटों को सौंप दिए गए थे।
कावरी जल विवाद पंचाट ने 25 जून 1991 को अंतरिम आदेश पारित किया और फिर अप्रैल 1992 और दिसंबर 1995 में स्‍पष्‍टीकरण आदेश जारी किए। 

बाद में 5.2.2007 को पंचाट ने अंतर्राज्‍यीय नदी विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(2) के अंतर्गत अपनी रिपोर्ट और फैसला दिया। इस रिपोर्ट और निर्णय सुनाए जाने के पश्‍चात केंद्र और राज्‍य सरकारों ने अधिनियम की धारा 5(3) के तहत पंचाट से स्‍पष्‍टीकरण और निर्देश के लिए अनुरोध किया है। मामला पंचाट के विचाराधीन है। मामले से संबद्ध राज्‍यों ने पंचाट के 5.2.2007 के निर्णय के विरूद्ध माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की है और अब यह मामला न्‍यायालयाधीन है।

कृष्‍णा जल विवाद पंचाट ने संबद्ध राज्‍यों महाराष्‍ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश द्वारा अंतरिम राहत के लिए दायर आवेदन पर 9 जून 2006 को निर्णय सुनाया और अंतरिम राहत प्रदान करने से इंकार करते हुए पंचाट से विवाद का हल प्राप्‍त करने के लिए कुछ नियमों की ओर इंगित किया। इसके पश्‍चात आंध्रप्रदेश राज्‍य ने अंतर्राज्‍यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(3) के अंतर्गत संवादात्‍मक आवेदन दायर किया जिसमें 9 जून 2006 के पंचाट के आदेश के अंतर्गत स्‍पष्‍टीकरण/मार्गनिर्देश मांगे गए हैं, यह आवेदन अभी लंबित है। पंचाट ने सिंतंबर और अक्‍टूबर 2006 को हुई सुनवाई में अपने सम्‍मुख विवाद के हल के लिए 29 मुद्दों की पहचान की है। पंचाट की सुनवाइयां अभी जारी हैं।

महादायी/मण्‍डोवी और वंसाधारा जल विवादों के संबंध में गोवा और ओडिशा राज्‍यों के निवेदन जुलाई 2002 और फरवरी 2006 में प्राप्‍त हुए हैं। महादायी जल विवाद के बारे में इस मंत्रालय में यह राय बनी है कि यह विवाद बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकेगा और अंतर्राज्‍यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के अनुसार आगे कार्रवाई की जा रही है। वन्‍सधारा जल विवाद के संबंध में पंचाट की स्थापना अनुपालन के चरण में है।
रावी और व्‍यास नदियों के जल पर पंजाब और हरियाण के दावों पर फैसला देने के लिए पंजाब समझौते (राजीव-लोंगोवाल सहमति-1985) के अनुच्‍छेद 9.1 और 9.2 के अनुसरण में 1986 में गठित रावी-व्‍यास जल पंचाट ने 30 जनवरी, 1987 को अपनी रिपोर्ट दाखिल की। संबद्ध राज्‍यों के संदर्भों और अपनी रिपोर्ट पर केंद्र सरकार द्वारा मांगे गए स्‍पष्‍टीकरणों/मार्गनिर्देर्शों पर अभी पंचाट को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है। पंचाट की कार्यवाही माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय में पंजाब समझौतों के समापन का अधिनियम 2004 पर राष्‍ट्रपति के संदर्भ पर आने वाले निर्णय पर निर्भर हो गई है।

सतलज यमुना सम्‍पर्क नहर के जरिए रावी-व्‍यास नदी जल में से हरियाणा का हिस्‍सा दिया जाना है। पंजाब के क्षेत्र में इस नहर का कार्य पूरा होने के मामले में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने 4 जून 2004 को एक निर्णय में केंद्र सरकार को नहर का काम पूरा करने की अपनी कार्ययोजना पर काम करने का निर्देश दिया था। केंद्र सरकार ने आवश्‍यक कार्यवाही की। किंतु पंजाब विधान सभा ने 12 जुलाई 2004 को रावी-व्‍यास नदी जल से संबंधित सभी समझौतों और उनके अंतर्गत सभी जिम्‍मेदारियों को निरस्‍त करते हुए पंजाब समझौता निरस्‍तीकरण अधिनियम 2004 लागू कर दिया। इस अधिनियम के बारे में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय में राष्‍ट्रपति की ओर से एक संदर्भ दायर किया गया है, जिसपर निर्णय अभी लंबित है।

Rural Development Programme in india

ग्रामीण विकास कार्यक्रम

ग्रामीण विकास

भारत गांवों का देश है और उसमें से लगभग आधे गांवों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। आजादी के बाद से ग्रामीण जनता का जीवन स्तर सुधारने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं, इसलिए ग्रामीण विकास विकास की एकीकृत अवधारणा रही है और सभी पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन की सर्वोपरी चिंता रही है। ग्रामीण विकास कार्यक्रम में निम्नलिखित का समावेश है:
  • ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं जैसे स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं, सड़क, पेयजल, विद्युतीकरण आदि का प्रावधान
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता में सुधार
  • सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सामाजिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा का प्रावधान
  • कृषि उत्पादकता बढ़ाकर, ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराकर ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं को लागू करना
  • ऋण और सब्सिडी के माध्यम से उत्पादक संसाधन उपलब्ध कराकर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तिगत परिवारों और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के लिए सहायता

Indian Parliament


भारतीय संसद

संसद भारत का सर्वोच्‍च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन-लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्‍य सभा (राज्‍यों की परिषद) होते हैं। राष्‍ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्‍थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को प्रवृत्‍त हुआ। नए संविधान के तहत प्रथम आम चुनाव वर्ष 1951-52 में आयोजित किए गए थे तथा प्रथम निर्वाचित संसद अप्रैल, 1952 में अस्तित्‍व में आई, दूसरी लो‍कसभा अप्रैल, 1957 में, तीसरी लोकसभा अप्रैल 1962 में, चौथी लोक सभा मार्च 1967 में, पांचवीं लोकसभा मार्च 1971 में, छठी लोकसभा मार्च 1977 में, सातवीं लोकसभा जनवरी 1980 में, आठवीं लोकसभा दिसम्‍बर 1984 में, नौंवी लोकसभा दिसम्‍बर 1989 में, दसवीं लोकसभा जून 1991 में, ग्‍यारहवी लोकसभा मई 1996 में, बारहवीं लोकसभा मार्च 1998 में, तेरहवीं लोकसभा अक्‍तूबर 1999 में, चौदहवीं लोकसभा मई 2004 में तथा पन्द्रहवीं लोकसभा अप्रैल 2009 में अस्तित्‍व में आई
भारत की संसद की वेबसाइट 

राज्‍य सभा Rajya Sabha

राज्‍य सभा की शुरूआत 1919 में देखी जा सकती है जब भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अनुसरण में एक द्वितीय सदन, का सृजन किया गया जिसका नाम राज्‍य परिषद था।

India - U.S. Relations and nuclear energy cooperation

India - U.S. Relations 

भारत-अमेरिका संबंध

वर्ष 2008 भारत तथा अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों के मामले में अत्‍यंत महत्वपूर्ण वर्ष रहा 10 अक्‍तूबर, 2008 को वाशिंगटन में भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए। इसकी घोषणा जुलाई 2005 में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा के दौरानकी गई थी। भारत ने पहली अगस्‍त, 2008 को अंतर्राष्‍ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ भारत विशिष्‍ट सुरक्षा समझौता किया, इससे अमेरिका का रास्‍ता साफ हुआ कि कोंडालिजा राईस ने वाशिंगटन में 10 अक्‍तूबर, 2008 को हस्‍ताक्षर किए। इससे दोनों देशों के संबंध मजबूत हुए हैं तथा आर्थिक और उच्‍च तकनीकी के क्षेत्र में सहयोग के नये अवसर खुले हैं।

आर्थिक तथा वाणिज्‍यक संबंधों के अतिरिक्‍त रक्षा सहयोग तथा जनता के बीच सहयोग प्राथमिकता के अन्‍य मुख्‍य मुददे हैं। वैश्‍विक मुददों पर साझी सोच तथा उर्जा, शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्‍वास्‍थ्‍य, कृषि आदि के क्षेत्र में सहयोग के संबंधों में और मजबूत आएगी

वर्ष के दौरान अन्‍य उच्‍चस्‍तरीय यात्राएं भी आयोजित की गई। सितंबर, 2008 में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह वाशिंगटन यात्रा पर गए। राष्‍ट्रपति बुश के साथ मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की तथा जुलाई, 2005 के संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में उल्‍लिखित मुददों की प्रगति पर संतोष जताया। यह संयुक्‍त वक्‍तव्‍य जुलाई, 2005 में प्रधानमंत्री की वाशिंगटन यात्रा तथा मार्च 2006 में राष्‍ट्रपति बुश की भारत यात्रा के दौरान जारी किए थे।

SAARC(South asian association for regional cooperation


सार्क (SAARC)

South asian association for regional cooperation

दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) की स्‍थापना 1985 में की गई थी। इसकी स्‍थापना क्षेत्रीय सहयोग ढ़ाचा विकसित करने के क्षेत्र के सामूहिक निर्णय की अभिव्‍यक्ति के रूप मं की गई। वर्तमान में, सार्क के आठ सदस्‍य है : अफगानिस्‍तान, बंगलादेश, भूटान, भारत, नेपाल, मालद्वीप, पाकिस्‍तान और श्रीलंका।

भारत 2007–08 में सार्क का अध्‍यक्ष था। (नई दिल्‍ली में 3–4 अप्रैल, 2007 में हुए 14वें सार्क शिखर सम्‍मेलन से लेकर 2–3 अगस्‍त, 2008 में कोलम्‍बो में हुए 15वें सार्क शिखर सम्‍मेलन तक)यह अवधि सार्क के इतिहास में सर्वाधिक क्रियाशील थी, जिसमें सार्क एक घोषणा करने वाले संगठन के स्‍थान पर कार्यान्‍वयन वाले संगठन में परिवर्तित होता दिखाई दिया। दिल्‍ली में 14वें शिखर सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री द्वारा की गई प्रत्‍येक घोषणा को अमली जामा पहनाया गया और भारत ने बदले में कुछ न चाहते हुए क्षेत्रीय हित में अपने दायित्‍चों का निर्वाह किया। सार्क की ऐतिहासिक उपलब्‍धियां इस प्रकार रही हैं :

Constitution of india

Constitution of india

भारत का संविधान

भाग I: संघ और उसका राज्‍य क्षेत्र

अनुच्‍छेद विवरण
1 संघ का नाम और राज्‍य क्षेत्र
2 नए राज्‍यों का प्रवेश या स्‍थापना
2क [निरसन]
3 नए राज्‍यों का निर्माण और वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्‍छेद 2 और अनुच्‍छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां

भाग II: नागरिकता 

अनुच्‍छेद विवरण
5 संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
6 पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
7 पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
9 विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना
10 नागरिकता के अधिकारों को बना रहना
11 संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना


भाग III: मूल अधिकार

साधारण

History of Indian Flag called TIRANGA

History of Indian Flag called TIRANGA

भारतीय तिरंगे का इतिहास


"सभी राष्‍ट्रों के लिए एक ध्‍वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्‍यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्‍ट करना पाप होगा। ध्‍वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्‍वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्‍लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्‍द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।"

"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्‍यूस, पारसी और अन्‍य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्‍वज को मान्‍यता दें और इसके लिए मर मिटें।"

- महात्‍मा गांधी

National symbols of India

India's national identity symbol
भारत की राष्‍ट्रीय पहचान के प्रतीक


इस खण्‍ड में आपको भारत की राष्‍ट्रीय पहचान के प्रतीकों का परिचय दिया गया है। यह प्रतीक भारतीय पहचान और विरासत का मूलभूत हिस्‍सा हैं। विश्‍व भर में बसे विविध पृष्‍ठभूमियों के भारतीय इन राष्‍ट्रीय प्रतीकों पर गर्व करते हैं क्‍योंकि वे प्रत्‍येक भारतीय के हृदय में गौरव और देश भक्ति की भावना का संचार करते हैं।


राष्‍ट्रीय ध्‍वज

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं: गहरा केसरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है। ध्वज की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है।

शीर्ष में गहरा केसरिया रंग देश की ताकत और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है। हरा रंग देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाता है।

इसका प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है। इसका व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के लगभग बराबर है और इसमें 24 तीलियां हैं। भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया।


मुद्रा चिन्ह

भारतीय रुपए का प्रतीक चिन्ह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान तथा आर्थिक संबलता को परिलक्षित कर रहा है। रुपए का चिन्ह भारत के लोकाचार का भी एक रूपक है। रुपए का यह नया प्रतीक देवनागरी लिपि के 'र' और रोमन लिपि के अक्षर 'आर' को मिला कर बना है, जिसमें एक क्षैतिज रेखा भी बनी हुई है। यह रेखा हमारे राष्ट्रध्वज तथा बराबर के चिन्ह को प्रतिबिंबित करती है। भारत सरकार ने 15 जुलाई 2010 को इस चिन्ह को स्वीकार कर लिया है।

यह चिन्ह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई के पोस्ट ग्रेजुएट डिजाइन श्री डी. उदय कुमार ने बनाया है। इस चिन्ह को वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित एक खुली प्रतियोगिता में प्राप्त हजारों डिजायनों में से चुना गया है। इस प्रतियोगिता में भारतीय नागरिकों से रुपए के नए चिन्ह के लिए डिजाइन आमंत्रित किए गए थे। इस चिन्ह को डिजीटल तकनीक तथा कम्प्यूटर प्रोग्राम में स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है।

History of India: Indian Freedom Struggle (1857-1947)

History of India: Indian Freedom Struggle (1857-1947)

इतिहास : भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम (1857-1947)

पुराने समय में जब पूरी दुनिया के लोग भारत आने के लिए उत्‍सुक रहा करते थे। यहां आर्य वर्ग के लोग मध्‍य यूरोप से आए और भारत में ही बस गए। उनके बाद मुगल आए और वे भी भारत में स्‍थायी रूप से बस गए। चंगेज़खान, एक मंगोलियाई था जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किया और लूट पाट की। अलेक्‍ज़ेडर महान भी भारत पर विजय पाने के लिए आया किन्‍तु पोरस के साथ युद्ध में पराजित होकर वापस चला गया। 

हेन सांग नामक एक चीनी नागरिक यहां ज्ञान की तलाश में आया और उसने नालंदा तथा तक्षशिला विश्‍वविद्यालयों में भ्रमण किया जो प्राचीन भारतीय विश्‍वविद्यालय हैं। कोलम्‍बस भारत आना चाहता था किन्‍तु उसने अमेरिका के तटों पर उतरना पसंद किया। पुर्तगाल से वास्‍को डिगामा व्‍यापार करने अपने देश की वस्‍तुएं लेकर यहां आया जो भारतीय मसाले ले जाना चाहता था। यहां फ्रांसीसी लोग भी आए और भारत में अपनी कॉलोनियां बनाई।

अंत में ब्रिटिश लोग आए और उन्‍होंने लगभग 200 साल तक भारत पर शासन किया। वर्ष 1757 ने प्‍लासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश जनों ने भारत पर राजनैतिक अधिकार प्राप्‍त कर लिया। और उनका प्रभुत्‍व लॉर्ड डलहौजी के कार्य काल में यहां स्‍थापित हो गया जो 1848 में गवर्नर जनरल बने। उन्‍होंने पंजाब, पेशावर और भारत के उत्तर पश्चिम से पठान जनजातियों को संयुक्‍त किया। और वर्ष 1856 तक ब्रिटिश अधिकार और उनके प्राधिकारी यहां पूरी मजबूती से स्‍थापित हो गए। जबकि ब्रिटिश साम्राज्‍य में 19वीं शताब्‍दी के मध्‍य में अपनी नई ऊंचाइयां हासिल की, असंतुष्‍ट स्‍थानीय शासकों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों तथा सामान्‍य नागरिकों ने सैनिकों की तरह आवाज़ उठाई जो उन विभिन्‍न राज्‍यों की सेनाओं के समाप्‍त हो जाने से बेरोजगार हो गए थे, जिन्हें ब्रिटिश जनों ने संयुक्‍त किया था और यह असंतोष बढ़ता गया। जल्‍दी ही यह एक बगावत के रूप में फूटा जिसने 1857 के विद्रोह का आकार‍ लिया।

The indigenous ruler of medieval India


The indigenous ruler of medieval India

भारत का मध्‍यकालीन इतिहास

आने वाला समय जो इस्‍लामिक प्रभाव और भारत पर शासन के साथ सशक्‍त रूप से संबंध रखता है, मध्‍य कालीन भारतीय इतिहास तथाकथित स्‍वदेशी शासकों के अधीन लगभग तीन शताब्दियों तक चलता रहा, जिसमें चालुक्‍य, पल्‍व, पाण्‍डया, राष्‍ट्रकूट शामिल हैं, मुस्लिम शासक और अंतत: मुगल साम्राज्‍य। नौवी शताब्‍दी के मध्‍य में उभरने वाला सबसे महत्‍वपूर्ण राजवंश चोल राजवंश था।

पाल

आठवीं और दसवीं शताब्‍दी ए.डी. के बीच अनेक शक्तिशाली शासकों ने भारत के पूर्वी और उत्तरी भागों पर प्रभुत्‍व बनाए रखा। पाल राजा धर्मपाल, जो गोपाल के पुत्र थे, में आठवीं शताब्‍दी ए.डी. से नौवी शताब्‍दी ए.डी. के अंत तक शासन किया। धर्मपाल द्वारा नालंदा विश्‍वविद्यालय और विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना इसी अवधि में की गई।

सेन

पाल वंश के पतन के बाद सेन राजवंश ने बंगाल में शासन स्‍थापित किया। इस राजवंश के स्‍थापक सामंत सेन थे। इस राजवंश के महानतम शासक विजय सेन थे। उन्‍होंने पूरे बंगाल पर कब्‍जा किया और उनके बाद उनके पुत्र बल्‍लाल सेन ने राज किया। उनका शासन शांतिपूर्ण रहा किन्‍तु इसने अपने विचारधाराओं को समूचा बनाए रखा। वे एक महान विद्वान थे तथा उन्‍होंने ज्‍योतिष विज्ञान पर एक पुस्‍तक सहित चार पुस्‍तके लिखी। इस राजवंश के अंतिम शासक लक्ष्‍मण सेन थे, जिनके कार्यकाल में मुस्लिमों ने बंगाल पर शासन किया और फिर साम्राज्‍य समाप्‍त हो गया।

प्रतिहार

प्रतिहार राजवंश के महानतम शासक मि‍हिर भोज थे

Ancient indian history-INdus velly civilization


INdus velly civilization

भारत का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्‍यता के जन्‍म के साथ आरंभ हुआ, और अधिक बारीकी से कहा जाए तो हड़प्‍पा सभ्‍यता के समय इसकी शुरूआत मानी जाती है। यह दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्‍से में लगभग 2500 बीसी में फली फूली, जिसे आज पाकिस्‍तान और पश्चिमी भारत कहा जाता है।

 सिंधु घाटी मिश्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार प्राचीन शहरी सबसे बड़ी सभ्‍यताओं का घर थी। इस सभ्‍यता के बारे में 1920 तक कुछ भी ज्ञात नहीं था, जब भारतीय पुरातात्विक विभाग ने सिंधु घाटी की खुदाई का कार्य आरंभ किया, जिसमें दो पुराने शहरों अर्थात मोहन जोदाड़ो और हड़प्‍पा के भग्‍नावशेष निकल कर आए। भवनों के टूटे हुए हिस्‍से और अन्‍य वस्‍तुएं जैसे कि घरेलू सामान, युद्ध के हथियार, सोने और चांदी के आभूषण, मुहर, खिलौने, बर्तन आदि दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग पांच हजार साल पहले एक अत्‍यंत उच्‍च विकसित सभ्‍यता फली फूली।

सिंधु घाटी की सभ्‍यता मूलत: एक शहरी सभ्‍यता थी और यहां रहने वाले लोग एक सुयोजनाबद्ध और सुनिर्मित कस्‍बों में रहा करते थे, जो व्‍यापार के केन्‍द्र भी थे। मोहन जोदाड़ो और हड़प्‍पा के भग्‍नाव‍शेष दर्शाते हैं कि ये भव्‍य व्‍यापारिक शहर वैज्ञानिक दृष्टि से बनाए गए थे और इनकी देखभाल अच्‍छी तरह की जाती थी। यहां चौड़ी सड़कें और एक सुविकसित निकास प्रणाली थी। घर पकाई गई ईंटों से बने होते थे और इनमें दो या दो से अधिक मंजिलें होती थी।

Hstory of ancient india-hindu religen



हिंदू धर्म 

 उत्पत्ति 

  अर्थ 


।ॐ।।पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- ईश उपनिष
ऋग्वेद को संसार की सबसे प्राचीन और प्रथम पुस्तक माना है। इसी पुस्तक पर आधारित है हिंदू धर्म। इस पुस्तक में उल्लेखित 'दर्शन' संसार की प्रत्येक पुस्तक में मिल जाएगा। माना जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर बाद में यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना हुई। दरअसल यह ऋग्वेद के भिन्न-भिन्न विषयों का विभाजन और विस्तार था।

विश्व की प्रथम पुस्तक : वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति : हिन्दू धर्म को सनातन, वैदिक या आर्य धर्म भी कहते हैं। हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। हिंदुत्व या हिंदू धर्म को प्राचीनकाल में सनातन धर्म कहा जाता था। एक हजार वर्ष पूर्व हिंदू शब्द का प्रचलन नहीं था। ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ नदी या जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और पाक से बहती है।

भाषाविदों का मानना है कि हिंद-आर्य भाषाओं की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में बदल जाती है। आज भी भारत के कई इलाकों में 'स' को 'ह' उच्चारित किया जाता है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा (पारसियों की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित हो गया। इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। किंतु पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को आज भी सिंधू या सिंधी कहा जाता है।

ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिन्दू' और 'आर्य' शब्द का उल्लेख मिलता है। दूसरी ओर अन्य इतिहासकारों का मानना है कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय में हिंदू शब्द की उत्पत्ति ‍इंदु से हुई थी। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची है। भारतीय ज्योतिषीय गणना का आधार चंद्रमास ही है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिंदू' कहने लगे।

आर्य शब्द का अर्थ : आर्य समाज के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं, जबकि आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर इसका अर्थ सिर्फ श्रेष्ठ ही माना जाता है। अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही आर्य है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।

HIstory of india-Ancient india-jain dharma


jain dharma history

दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे। मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है।

जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे।

जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।

ईपू आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म काशी में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भी हुआ था। इन्हीं के नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित है।

भगवान पार्श्वनाथ तक यह परंपरा कभी संगठित रूप में अस्तित्व में नहीं आई। पार्श्वनाथ से पार्श्वनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई और इस परंपरा को एक संगठित रूप मिला। भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से ही थे।


jain dharma history

Monday 3 December 2012

geography of rajasthan



राजस्थान की प्रशासनिक इकाईयाँ



प्रशासनिक इकाईयाँ
स्वतत्रंता के पश्चात् 1956 में राजस्थान राज्य के गठन के प्रक्रिया पूर्ण हुई। वर्तमान में राज्य को प्रशासनिक दृष्टि से सात संभागों, 33 जिलों और 241 तहसीलों में विभक्त किया गया है।
    1. जयपुर संभाग  
जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर एवं झुन्झुँनू जिले।
    2. जोधपुर संभाग
जोधपुर, जालौर, पाली, बाड़मेर, सिरोही एवं जैसलमेर जिले।
    3. भरतपुर संभाग
भरतपुर, धौलपुर, करौली एवं सवाई माधोपुर जिले।
    4. अजमेर संभाग
अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक एवं नागौर जिले।
    5. कोटा संभाग
कोटा, बूंदी, बारां एवं झालावाड़ जिले।
    6. बीकानेर संभाग
बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं चूरू जिले।
    7. उदयपुर संभाग
उदयपुर, राजसमंद, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ एवं प्रतापगढ़ जिले।

imp notes 2013



प्रश्न
उत्तर
जयपुर को नौ वगों के सिद्धांत पर बसाने वाला महान शिल्पकार कौन था
विद्याधर
सवाई जयसिंह के कल्पनानुसार जयपुर शहर की नींव रखी गई
राजगुरु पंडित जगन्नाथ सम्राट द्वारा
पत्थर की जाली एवं कटाई के कारण संसार की प्रसिद्ध हवेली
पटवों की हवेली (जैसलमेर)
डीग के महल (भारतीय एवं इस्लामी कला का समन्वय) स्थित है
डीग (भरतपुर) में
रानी की बावड़ी, संठ की बावड़ी तथा हाड़ी रानी का कुण्ड स्थित है
टोडारायसिंह में
सभी किलों का सिरमौर कहा जाता है
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
किलो अलखणो यू कहे, आव कला राठौड़। मो सिर उतरे मोहणो, तो सिर बंधै मौड़।। यह लोक प्रसिद्ध दोहा किस दुर्ग से संबंधित है?
सिवाणा दुर्ग
अजमेर का तारागढ़ किला इस नाम से जाना जाता है
गढ़बीठली
तारागढ़ का निर्माण किसने करवाया था?
चौहान शासक अजयपाल ने
1452 ई. के लगभग राणा कुंभा द्वारा परमार शासकों द्वारा निर्मित आबू के पुराने किले के भग्नावशेषों पर किस दुर्ग का निर्माण करवाया गया?
अचलगढ़
जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने विक्रम संवत 1515 (1458 ई.) में जिस दुर्ग का निर्माण करवाया वह है
मेहरानगढ़ (जोधपुर)
चिडि़या अूंक पहाड़ी पर स्थित मेहरानगड़ का एक नाम यह भी है
मयूरध्वज गढ़
भगनो विद्युत मंडलाकुति गढ़ी जित्वा समस्तना रीन।यह उक्ति जिस दुर्ग के संबंध में कही गई है
मेवाड़ का मांडलगढ़
यहां का जगतशिरोमणी मंदिर हिंदु स्थापत्य कलाकी अनुपम कृति है
आमेर (जयपुर)
एशिया की सबसे बड़ी जयबाण तोप यहां है
जयगढ़ (जयपुर)
सवाई जयसिंह ने मराठों के विरूद्ध सुरक्षा के लिए कौनसा दुर्ग बनवाया था
नाहरगढ़ (सुदर्शनगढ़) आमेर
गागरौण का सुप्रसिद्ध दुर्ग स्थित है
झालावाड़ में
1155 ई. में रावल जैसल द्वारा स्थापित जैसलमेर का प्रसिद्ध दुर्ग है
सोनारगढ़ या सेनगढ़
सोनगढ़ किस केटी का दुर्ग है
धान्वन कोटी का
भाटियों की वीरता का साक्षी भटनेर का प्राचीन दुर्ग स्थित है
हनुमानगढ़
लाल पत्थरों से निर्मित बीकानेर स्थित दुर्ग
जुनागढ़
1733 ई. में महाराजा सुरजमल द्वारा निर्मित भूमि दुर्ग है
लोहागढ़ (भरतपुर)