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Tuesday 4 December 2012

The indigenous ruler of medieval India


The indigenous ruler of medieval India

भारत का मध्‍यकालीन इतिहास

आने वाला समय जो इस्‍लामिक प्रभाव और भारत पर शासन के साथ सशक्‍त रूप से संबंध रखता है, मध्‍य कालीन भारतीय इतिहास तथाकथित स्‍वदेशी शासकों के अधीन लगभग तीन शताब्दियों तक चलता रहा, जिसमें चालुक्‍य, पल्‍व, पाण्‍डया, राष्‍ट्रकूट शामिल हैं, मुस्लिम शासक और अंतत: मुगल साम्राज्‍य। नौवी शताब्‍दी के मध्‍य में उभरने वाला सबसे महत्‍वपूर्ण राजवंश चोल राजवंश था।

पाल

आठवीं और दसवीं शताब्‍दी ए.डी. के बीच अनेक शक्तिशाली शासकों ने भारत के पूर्वी और उत्तरी भागों पर प्रभुत्‍व बनाए रखा। पाल राजा धर्मपाल, जो गोपाल के पुत्र थे, में आठवीं शताब्‍दी ए.डी. से नौवी शताब्‍दी ए.डी. के अंत तक शासन किया। धर्मपाल द्वारा नालंदा विश्‍वविद्यालय और विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना इसी अवधि में की गई।

सेन

पाल वंश के पतन के बाद सेन राजवंश ने बंगाल में शासन स्‍थापित किया। इस राजवंश के स्‍थापक सामंत सेन थे। इस राजवंश के महानतम शासक विजय सेन थे। उन्‍होंने पूरे बंगाल पर कब्‍जा किया और उनके बाद उनके पुत्र बल्‍लाल सेन ने राज किया। उनका शासन शांतिपूर्ण रहा किन्‍तु इसने अपने विचारधाराओं को समूचा बनाए रखा। वे एक महान विद्वान थे तथा उन्‍होंने ज्‍योतिष विज्ञान पर एक पुस्‍तक सहित चार पुस्‍तके लिखी। इस राजवंश के अंतिम शासक लक्ष्‍मण सेन थे, जिनके कार्यकाल में मुस्लिमों ने बंगाल पर शासन किया और फिर साम्राज्‍य समाप्‍त हो गया।

प्रतिहार

प्रतिहार राजवंश के महानतम शासक मि‍हिर भोज थे
। उन्‍होंने 836 में कन्‍नौज (कान्‍यकुब्‍ज) की खोज की और लगभग एक शताब्‍दी तक प्रतिहारों की राजधानी बनाया। उन्‍होंने भोजपाल (वर्तमान भोपाल) शहर का निर्माण किया। राजा भोज और उनके अन्‍य सहवर्ती गुजर राजाओं को पश्चिम की ओर से अरब जनों के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा और पराजित होना पड़ा।
वर्ष 915 - 918 ए.डी. के बीच कन्‍नौज पर राष्‍ट्रकूट राजा ने आक्रमण किया। जिसने शहर को विरान बना दिया और प्रतिहार साम्राज्‍य की जड़ें कमजोर दी। वर्ष 1018 में कन्‍नौज ने राज्‍यपाल प्रतिहार का शासन देखा, जिसे गजनी के महमूद ने लूटा। पूरा साम्राज्‍य स्‍वतंत्रता राजपूत राज्‍यों में टूट गया।

राष्‍ट्रकूट

इस राजवंश ने कर्नाटक पर राज्‍य किया और यह कई कारणों से उल्‍लेखनीय है। उन्‍होंने किसी अन्‍य राजवंश की तुलना में एक बड़े हिस्‍से पर राज किया। वे कला और साहित्‍व के महान संरक्षक थे। अनेक राष्‍टकूट राजाओं द्वारा शिक्षा और साहित्‍य को दिया गया प्रोत्‍साहन अनोखा है और उनके द्वारा धार्मिक सहनशीलता का उदाहरण अनुकरणीय है।

दक्षिण का चोल राजवंश

यह भारतीय महाद्वीप के एक बड़े हिस्‍से को शामिल करते हुए नौवीं शताब्‍दी ए.डी. के मध्‍य में उभरा साथ ही यह श्रीलंका तथा मालदीव में भी फैला था।
इस राजवंश से उभरने वाला प्रथम महत्‍वपूर्ण शासक राजराजा चोल 1 और उनके पुत्र तथा उत्तरवर्ती राजेन्‍द्र चोल थे। राजराजा ने अपने पिता की जोड़ने की नीति को आगे बढ़ाया। उसने बंगाल, ओडिशा और मध्‍य प्रदेश के दूरदराज के इलाकों पर सशस्‍त्र चढ़ाई की।
राजेन्‍द्र I, राजाधिराज और राजेन्‍द्र II के उत्तरवर्ती निडर शासक थे जो चालुक्‍य राजाओं से आगे चलकर वीरतापूर्वक लड़े किन्‍तु चोल राजवंश के पतन को रोक नहीं पाए। आगे चलकर चोल राजा कमजोर और अक्षम शासक सिद्ध हुए। इस प्रकार चोल साम्राज्‍य आगे लगभग डेढ़ शताब्‍दी तक आगे चला और अंतत: चौदहवीं शताब्‍दी ए.डी. की शुरूआत में मलिक कफूर के आक्रमण पर समाप्‍त हो गया।


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