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Monday 3 December 2012

geography of raj-introduction


 भौतिक पर्यावरण - सामान्य परिचय
राजस्थान राज्य जहाँ एक ओर इसके गौरवशाली इतिहास के लिये पहचाना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसका भौतिक स्वरूप भी विशिष्टता लिये हुए है। राज्य के भौतिक पर्यावरण ने यहाँ के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक वातावरण को सदैव से प्रभावित किया है और वर्तमान में भी राज्य के विकास में महती भूमिका निभा रहा है।

स्थिति एवं विस्तार
राजस्थान भारत के पश्चिमी भाग में २३ डिग्री उत्तरी अक्षांश से लेकर ३० डिग्री १२ उत्तरी अक्षांश के मध्य तथा ६९ डिग्री ३० पूर्वी देशांतर से ७८ डिग्री १७ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। कर्क रेखा अर्थात् 23 डिग्री अक्षांश राज्य के दक्षिण में बासँ वाड़ा-डूँगरपरु जिलों से गजुरती हैं। राज्य की पश्चिमी सीमा भारत-पाकिस्तान की अन्तर्राश्ट्रीय सीमा है, जो 11,070 किलोमीटर लम्बी है। राज्य की उत्तरी और उत्तरी-पूर्वी सीमा पंजाब तथा हरियाणा से, पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश से, दक्षिणी-पश्चिमी सीमा क्रमशः मध्य प्रदेश तथा गुजरात से संयुक्त है।

राजस्थान का क्षेत्रीय विस्तार 3,42,239 वर्ग किलोमीटर में है जो भारत के कुल क्षेत्र का 10.43 प्रतिशत है। अतः क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व के अनेक देशों से बड़ा है, उदाहरण के लिये इजराइल से 17 गुना, श्रीलंका से पांच गुना, इंग्लैण्ड से दुगना तथा नार्वे, पोलैण्ड, इटली से भी अधिक विस्तार रखता है। राजस्थान की आकृति विषम कोण चतुर्भुज के समान है। राज्य की उत्तर से दक्षिण लम्बाई 826 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम चैड़ाई 869 किलोमीटर है।

प्रशासनिक इकाईयाँ
स्वतत्रंता के पश्चात् 1956 में राजस्थान राज्य के गठन के प्रक्रिया पूर्ण हुई। वर्तमान में राज्य को प्रशासनिक दृष्टि से सात संभागों, 33 जिलों और 241 तहसीलों में विभक्त किया गया है।


राज्य के संभाग एवं उनमें सम्मलित जिलें निम्न प्रकार से है-
1. जयपुर संभाग - जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर एवं झुन्झुँनू जिले।
2. जोधपुर संभाग - जोधपुर, जालौर, पाली, बाड़मेर, सिरोही एवं जैसलमेर जिले।
3. भरतपुर संभाग - भरतपुर, धौलपुर, करौली एवं सवाई माधोपुर जिले।
4. अजमेर संभाग - अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक एवं नागौर जिले।
5. कोटा संभाग - कोटा, बूंदी, बारां एवं झालावाड़ जिले।
6. बीकानेर संभाग - बीकानेर,, गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं चूरू जिले।
7. उदयपुर संभाग - उदयपरु , राजसमंद, डगूं रपुर, बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ एवं प्रतापगढ़ जिले।

राजस्थान अध्ययन - भूगोल

राजस्थान : जनगणना - 2011 के अनंतिम आंकड़े


राजस्थान : जनगणना - 2011 के अनंतिम आंकड़े
कुल जनसंख्या
68621012
(i)                महिला जनसंख्या
33000926
(ii)              पुरुष जनसंख्या
35620086
साक्षरता (%) में
67.06 (देश स्तर पर 33वां स्थान)
(i)                महिला साक्षरता
52.66
(ii)              पुरुष साक्षरता
80.51
(iii)            सर्वाधिक महिला साक्षरता
कोटा (66.32%)
(iv)            सर्वाधिक पुरुष साक्षरता
झुंझुनू (87.88%)
शीर्ष चार साक्षरता वाले जिले
कोटा (77.84%), जयपुर (76.44%), झुंझुनू (74.72%), सीकर (72.58%)
न्यूनतम साक्षरता वाले  चार जिले
जालौर (55.58%), सिरोही(56.02%),
प्रतापगढ़ (56.30%), बांसवाड़ा (57.20%)
लिंगानुपात
926
(i)                0-6 आयु वर्ग लिंगानुपात
883
(ii)              सर्वाधिक और न्यूनतम लिंगानुपात
क्रमशः डूंगरपुर (990) और धौलपुर (845)
जनघनत्व
201
सर्वाधिक जनघनत्व वाला जिला
भरतपुर (503)
न्यूनतम जनघनत्व वाला जिला
जैसलमेर (17)
दशकीय जनसंख्या वुद्धि दर
21.44%
सर्वाधिक एवं न्यूनतम दशकीय जनसं.या वुद्धि दर वाले जिले
क्रमशः बाड़मेर (32.55%) और हनुमानगढ़ (10.06%)
सर्वाधिक जनसंख्या वाला जिला
जयपुर (6663971)
न्यूनतम जनसंख्या वाला जिला
जैसलमेर (672008)


राजस्थान के भूगोल संबंधी महत्तवपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्र.सं.
प्रश्न
उत्तर
1.
राजस्थान की स्थलीय सीमा रेखा की लंबाई है
5920 km
2.
राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगने वाले जिलों में सर्वाधिक सीमा किसकी लगती है?
बीकानेर
3.
कर्क रेखा राजस्थान के किस जिले से होकर गुजरती है?
बांसवाड़ा
4.
राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े जिले स्थित है?
पश्चिमी क्षेत्र में
5.
राजस्थान की राज्यीय सीमा कितनें राज्यों से मिली हुई है?
5
6.
राजस्थान के आक्षांशीय विस्तार के कारण उत्तर से दक्षिण तक तापक्रम में कितना अंतर होता है?
10 डिग्री से.
7.
मध्यप्रदेश के साथ राजस्थान के कितनें जिलों की सीमाएं लगती है?
10
8.
राजस्थान का आक्षांशीय व देशांतरीय विस्तार क्या है?
23°3’ NL - 30°12’ NL तथा 69°30’ EL - 78°17’ EL
9.
राजस्थान का वह जिला जिसकी अंतर्राज्यीय सीमा दो-दो सीमावर्ती राज्यों से मिलती है?
भरतपुर और हनुमानगढ़ दोनों की
10.
राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगने वाले जिलों में सर्वाधिक सीमा रेखा किसकी है?
जैसलमेर
11.
राजस्थान की पश्चिमी सीमा का कितना भाग पाकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाता है?
1070 km


12.
राजस्थान भारत के किस भाग में स्थित है?
उत्तर-पश्चिम
13.
रेडक्लिफ रेखा का अंतिम (दक्षिणी) छोर बाड़मेर का कौनसा गांव है?
शाहगढ़
14.
किस राज्य के साथ राजस्थान की सर्वाधिक सीमा लगती है?
15. मध्यप्रदेश
15.
राजस्थान का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत है?
10.41%
16.
राजस्थान का दक्षिण में विस्तार बांसवाड़ के किस गांव तक है?
बोरकुंड गांव (कुशलगढ़)


राजस्थान के त्रिवेणी संगम


त्रिवेणी संगम स्थल
नदियां
जिला
विशेष
साबंला (बेणेश्वर)
सोम-माही-जाखम
डूंगरपुर
राजस्थान का कुंभ/ आदिवासियों का महाकुंभ
मांडलगढ़ (बींगोद)
बनास -बेड़च-मेनाल
भीलवाड़ा
त्रिवेणी तीर्थ
मानपुर (रामेश्वर घाट)
चम्बल-बनास-सीप
सवाई माधोपुर
19 वर्षो से अखण्ड संकीर्तन / श्रीजी मंदिर




राजस्थान के उच्चावच अर्थात् धरातल एवं धरातलीय प्रदेश
राजस्थान एक विशाल राज्य है अतः यहाँ धरातलीय विविधताओं का होना स्वाभाविक है। राज्य में पर्वतीय क्षेत्र, पठारी प्रदेश एवं मैदानी और मरूस्थली प्रदेशों का विस्तार है अर्थात् यहाँ उच्चावच सम्बन्धी विविधतायें हैं।

राजस्थान के उच्चावच के निम्न स्वरूप स्पष्ट होते है :

1. उच्च शिखर - इसके अन्तर्गत वे पर्वतीय शिखर सम्मिलित हैं जो समुद्रतल से 900 मीटर से अधिक ऊँचे हैं। ये राजस्थान के कुल एक प्रतिशत क्षेत्र से भी कम हैं। इसमें अरावली का सर्वोच्च शिखर गुरुशिखर है जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 1722 मीटर है। दक्षिणी अरावली के अन्य उच्च शिखर सेर, अचलगढ़, देलवाड़ा, आबू, जरगा, कुम्भलगढ़ हैं।

2. पर्वत शृंखला - इसमें 600 मीटर से 900 मीटर की ऊँचाई वाला क्षेत्र सम्मिलित है जो राज्य के लगभग 6 प्रतिशत भाग में विस्तृत है। सम्पूर्ण अरावली पर्वतमाला इसमें सम्मिलित है जो दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक अक्रमिक रूप में राजस्थान के मध्य भाग में विस्तृत है। इसका सर्वाधिक विस्तार सिरोही, उदयपुर, राजसमंद से अजमेर जिले तक है। इसके पश्चात् जयपुर और अलवर जिलों इन श्रेणियों का विस्तार अक्रमिक होता जाता है।

3. उच्च भूमि एवं पठारी क्षेत्र- इनका विस्तार अरावली श्रेणी के दोनों ओर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी-पूर्वी पठारी क्षेत्र में है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से ऊँचाई 300 से 600 मीटर के मध्य है। यह राजस्थान के लगभग 31 प्रतिशत क्षेत्र पर विस्तृत है। इसका उत्तरी-पूर्वी भाग प्रायः समतल है जिसकी औसत ऊँचाई 400 मीटर है। जबकि दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र उच्च भूमि है, जहाँ ऊबड़-खाबड़ धरातल है तथा औसत ऊँचाई 500 मीटर है। राज्य के दक्षिण-पूर्व में हाड़ौती का पठारी क्षेत्र है। चित्तौड़गढ़ तथा प्रतापगढ़ जिले में भी पठारी क्षेत्र है।

4. मैदानी क्षेत्र- इसका विस्तार राज्य के लगभग 51 प्रतिशत भू-भाग पर है जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 150 से 300 मीटर है। इसके दो वृहत क्षेत्र हैंरू प्रथम-पश्चिमी राजस्थान का रेतीला मरूस्थली क्षेत्र एवं द्वितीय- पूर्वी मैदानी क्षेत्र। पूर्वी मैदान में बनास बेसिन, चम्बल बेसिन तथा छप्पन मैदान (मध्य माही बेसिन) हैं जो नदियों द्वारा निर्मित मैदान है तथा कृशि के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है।
धरातलीय प्रदेश
धरातलीय विशिष्टताओं के आधार पर राजस्थान को निम्नलिखित प्रमुख एवं उप विभागों में विभक्त किया जाता है-
1. पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
4. दक्षिणी-पूर्वी पठार (हाडौती का पठार)
1. पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश

राजस्थान का अरावली श्रेणियों के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क मरूस्थली प्रदेश है। यह एक विशिष्ट भौगोलिक प्रदेश है, जिसे भारत का विशाल मरूस्थलअथवा थार मरूस्थलके नाम से जाना जाता है। इसका विस्तार बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, पाली, जालौर, नागौर, सीकर, चूरू, झुन्झुनू, हनुमानगढ़ एवं गंगानगर जिलों में है। यद्यपि गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं बीकानेर जिलों में सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से क्षेत्रीय स्वरूप में परिवर्तन गया है।

सम्पूर्ण पश्चिमी मरूस्थली क्षेत्र समान उच्चावच नहीं रखता अपितु इसमें भिन्नता है। इसी भिन्नता के इसकों चार उप-प्रदेशों में विभिक्त किया जाता है, ये हैं-
() शुष्क रेतीला अथवा मरूस्थली प्रदेश
() लूनी-जवाई बेसिन
() शेखावाटी प्रदेश, एवं
() घग्घर का मैदान
() शुष्क रेतीला अथवा मरूस्थली प्रदेश- यह क्षेत्र शुष्क मरूस्थली क्षेत्र है जहाँ वार्षिक वर्षा को औसत 25 सेमी. से कम है। इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिले एवं जोधपुर और चूरू जिलों के पश्चिमी भाग सम्मलित है। इस प्रदेश में सर्वत्र बालुका-स्तूपों का विस्तार है। कुछ क्षेत्रों जैसे पोकर, जैसलमेर, रामगढ़ में चट्टानी संरचना दृष्टिगत होती है।

() लूनी-जवाई बेसिन- यह एक अर्द्ध-शुष्क प्रदेश है जिसमें लूनी एवं इसकी प्रमुख जवाई तथा अन्य सहायक नदियाँ प्रवाहित है। इसका विस्तार पाली, जालौर, जोधपुर जिलों एवं नागौर जिले के दक्षिणी भागांे मंे हैं। यह एक नदी निर्मित मैदान है जिसे लूनी बेसिनके नाम से जाना जाता है।

() शेखावटी प्रदेश- इसे बांगर प्रदेशके नाम से भी जाना जाता है। षेखावटी प्रदेश का विस्तार झुन्झुनू, सीकर और चूरू जिले तथा नागौर जिले के उत्तरी भाग में है। यह प्रदेश भी रेतीला प्रदेश है जहाँ कम ऊँचाई के बालूका-स्तूपों का विस्तार हैं। इस प्रदेश में अनेक नमकीन पानी के गर्त (रन) हैं जिनमें डीडवाना, डेगाना, सुजानगढ़, तलछापर, परिहारा, कुचामन आदि प्रमुख हैं।

() घग्घर का मैदान- गंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों का मैदानी क्षेत्र का निर्माण घग्घर नदी के प्रवाह क्षेत्र की बाढ़ से हुआ है। वर्तमान में घग्घर नदी को मृत नदीकहा जाता है क्योंकि इसका प्रवाह तल स्पष्ट नहीं है, किन्तु वर्षा काल में इसमें केवल पानी प्रवाहित होता है, अपितु बाढ़ जाती है। घग्घर नदी प्राचीन वैदिक कालीन सरस्वती नदी है जो विलुप्त हो चुकी है। यह सम्पूर्ण मैदानी क्षेत्र है जो वर्तमान में कृषि क्षेत्र बन गया है।

2. अरावली पर्वतीय प्रदेश

अरावली पर्वत श्रेणियाँ राजस्थान का एक विशिश्ट भौगोलिक प्रदेश है। अरावली विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रेणी है जो राज्य में कर्णवत उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैली है। ये पर्वत श्रेणियाँ उत्तर में देहली से प्रारम्भ होकर गुजरात में पालनपुर तक लगभग 692 किमी. की लम्बाई में विस्तृत है। अरावली पर्वतीय प्रदेश का विस्तार राज्य के सात जिलों- सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपुर, दौसा और अलवर में।

अरावली पर्वत प्रदेश को तीन प्रमुख उप-प्रदेशों में विभक्त किया जाता है, ये हैं-
() दक्षिणी अरावली प्रदेश
() मध्य अरावली प्रदेश
() उत्तरी अरावली प्रदेश
() दक्षिणी अरावली प्रदेश- इसमंे सिरोही, उदयपुर और राजसमंद जिले सम्मलित हैं। यह प्रदेश पूर्णतया पर्वतीय प्रदेश है, जहाँ अरावली की श्रेणियाँ अत्यधिक सघन एवं उच्चता लिये हुए हैं। इस प्रदेश में अरावली पर्वतमाला के अनेक उच्च शिखर स्थित हैं। इसमें गुरुशिखर पर्वत राजस्थान का सर्वोच्च पर्वत शिखर है जिसकी ऊँचाई 1722 मीटर है जो सिरोही जिले में माउन्ट आबू क्षेत्र में स्थित है। यहाँ की अन्य प्रमुख उच्च पर्वत चोटियाँ हैं- सेर (1597 मीटर), अचलगढ़ (1380मीटर), देलवाड़ा (1442मीटर), आबू (1295 मीटर) और ऋषिकेश (1017मीटर) उदयपुर-राजसमंद क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर जरगा पर्वत है जिसकी ऊँचाई 1431 मीटर है, इस क्षेत्र की अन्य श्रेणियाँ कुम्भलगढ़ (1224मीटर) लीलागढ़ (874मीटर), कमलनाथ की पहाड़ियाँ (1001मीटर) तथा सज्जनगढ़ (938 मीटर) है। उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा के बीच एक पठारी क्षत्रे हैं जिसे भोराट का पठारके नाम से जाना जाता है।

() मध्य अरावली प्रदेश- यह मुख्यतः अजमेर जिले में फैला है। इस क्षेत्र में पर्वत श्रेणियों के साथ संकीर्ण घाटियाँ और समतल स्थल भी स्थित है। अजमेर के दक्षिण-पश्चिम भाग में तारागढ़ (870 मीटर) और पश्चिम मंे सर्पिलाकार पवर्त श्रेणियाँ नाग पहाड़ (795मीटर) कहलाती हैं। ब्यावर तहसील में अरावली श्रेणियों के चार दर्रे स्थित है जिनके नाम हैं : बर, परवेरिया और शिवपुर घाट, सूरा घाट दर्रा और देबारी।

() उत्तरी अरावली प्रदेश- इस क्षेत्र का विस्तार जयपुर, दौसा तथा अलवर जिलों में है। इस क्षेत्र में अरावली की श्रेणियाँ अनवरत होकर दूर-दूर होती जाती हैं। इनमें शेखावाटी की पहाडियाँ, तोरावाटी की पहाड़ियों तथा जयपुर और अलवर की पहाड़ियाँ सम्मलित हैं। इस क्षेत्र में पहाड़ियों की सामान्य ऊँचाई 450 से 750 मीटर है। इस प्रदेश के प्रमुख उच्च शिखर सीकर जिल मंे रघुनाथगढ़ (1055मीटर), अलवर में बैराठ (792 मीटर) तथा जयपुर में खो (920 मीटर) है। अन्य उच्च शिखर जयगढ़, नाहरगढ़, अलवर किला और बिलाली है।

3. पूर्वी मैदानी प्रदेश

राजस्थान का पूर्वी प्रदेश एक मैदानी क्षेत्र है जो अरावली के पूर्व में विस्तृत है। इसके अन्तर्गत भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधौपुर, जयपुर, दौसा, टोंक तथा भीलवाड़ा जिलों के मैदानी भाग सम्मलित है। यह प्रदेश नदी बेसिनप्रदेश है अर्थात् नदियों द्वारा जमा की गई मिट्टी से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। इस मैदानी प्रदेश के तीन उप-प्रदेश हैं-
() बनास-बाणगंगा बेसिन
() चम्बल बेसिन और
() मध्य माही बेसिन अथवा छप्पन मैदान।
() बनास-बाणगंगा बेसिन- बनास और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित यह एक विस्तृत मैदान है। यह मैदान बनास और इसकी सहायक बाणगंगा, बेडच, कोठारी, डेन, सोहाद्रा, मानसी, धुन्ध, बांडी, मोरेल, बेड़च, वागन, गम्भीर आदि द्वारा निर्मित है। यह एक विस्तृत मैदान है, जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 150 से 300 मीटर के मध्य है तथा ढाल पूर्व की ओर है।

() चम्बल बेसिन- इसके अन्तर्गत कोटा, सवाई माधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों का क्षेत्र सम्मलित है। कोटा का क्षेत्र हाडौती में सम्मलित है किन्तु यहाँ चम्बल का मैदानी क्षेत्र स्थित है। इस प्रदेश में सवाई माधोपुर, करौली एवं धौलपुर में चम्बल के बीहड़ स्थित है। यह अत्यधिक कटा-फटा क्षेत्र है, इनके मध्य समतल क्षेत्र स्थित है।

() मध्य माही बेसिन अथवा छप्पन मैदान- इसका विस्तार उदयपुर के दक्षिण-पूर्व से, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिलों में है। यह माही नदी का प्रवाह क्षेत्र है जो मध्य प्रदेश से निकलकर इस प्रदेश से गुजरती हुई खंभात की खाड़ी में गिरती है। यह क्षेत्र असमतल है तथा सर्वत्र छोटी-छोटी पहाडियाँ है। यह क्षेत्र पहाड़ियों से युक्त तथा कटा-फटा होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में बांगडनाम से पुकारा जाता है। प्रतापगढ़ और बाँसवाड़ा के मध्य के भाग में छप्पन ग्राम समूह स्थित है अतः इसे छप्पन का मैदानभी कहते है।

4. दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश अथवा हाडौती

राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी भाग एक पठारी भाग है, जिसे हाडौती के पठारके नाम से जाना जाता है। यह मालवा के पठार का विस्तार है तथा इसका विस्तार कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां जिलों में है। इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई 500 मीटर है तथा यहाँ अनेक छोटी पर्वत श्रेणियाँ हैं, जिनमें मुकन्दरा की पहाड़ियाँ और बूंदी की पहाड़ियाँ प्रमुख हैं। यहाँ चम्बल नदी और इसकी प्रमुख सहायक कालीसिंध, परवन और पार्वती नदियाँ प्रवाहित है, उनके द्वारा निर्मित मैदानी प्रदेश कृषि के लिये उपयुक्त है।

राजस्थान का अपवाह तन्त्र अर्थात् नदियाँ
अपवाह तन्त्र से तात्पर्य नदियाँ एवं उनकी सहायक नदियों से है जो एक तन्त्र अथवा प्रारूप का निर्माण करती हैं। राजस्थान में वर्श भर बहने वाली नदी केवल चम्बल है। राजस्थान के अपवाह तन्त्र को अरावली पर्वत श्रेणियाँ निर्धारित करती है। अरावली पर्वत श्रेणियाँ राजस्थान में एक जल विभाजक है और राज्य मे बहने वाली नदियों को दो भागों में विभक्त करती है। इसके अतरिक्त राज्य में अन्तः प्रवाहित नदियाँ भी हैं।

इसी आधार पर राजस्थान की नदियों को निम्नलिखित तीन समूहों में विभक्त किया जाता हैः

1. बंगाल की खाडी में गिरने वाली नदियाँ
2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
3. अन्तः प्रवाहित नदियाँ


1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ
इसके अन्तर्गत चम्बल, बनास, बाणगंगा और इनकी सहायक नदियाँ सम्मलित हैं।
चम्बल नदी- इसको प्राचीन काल में चर्मण्यवती के नाम से जाना जाता था। चम्बल नदी का उद्भव मध्य प्रदेश में महू के निकट मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी से हुआ। यह राजस्थान में चैरासीगढ़ (चित्तौड़गढ़ जिला) के निकट प्रवेश कर कोटा-बूंदी जिलों की सीमा बनाती हुई सवाई माधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों से होते हुए अन्त में यमुना नदी में मिल जाती है। चम्बल नदी पर गाँधी सागर, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर बाँध तथा कोटा बैरा बनाये गये हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियाँ बनास, कालीसिंध और पार्वती हैं।
बनास नदी- बनास नदी अरावली की खमनोर पहाड़ियों से निकलती है जो कुम्भलगढ़ से 5 किमी. दूर है। यह कुम्भलगढ़ से दक्षिण की आरे गोगुन्दा के पठार से प्रवाहित होती हुई नाथद्वारा, राजसंमद, रेल मगरा पार कर चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक जिले से होती हुई सवाई माधोपुर में चम्बल से मिल जाती है। बनास नदी को वन की आशाभी कहा जाता है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैरू बेडच, कोठारी, खारी, मैनाल, बाण्डी, धुन्ध और मोरेल।
काली सिन्ध नदी- यह मध्य प्रदेश में देवास के निकट से निकल कर झालावाड़ और बारां जिले में बहती हुई नानेरा के निकट चम्बल नदीं में मिलती है। सकी प्रमुख सहायक नदियां परवन, उजाड़, निवाज और आहू हैं।
पार्वती नदी- मध्य प्रदेश के सिहोर क्षत्रे से निकलकर बंारा जिले में बहती हुई सवाईमाधोपुर जिले में पालिया के निकट चम्बल में मिल जाती है।
वापनी (बाह्यणी) नदी - चित्तौड़गढ़ जिले में हरिपुर गाँव के निकट से निकलकर भैसरोड़गढ़ के निकट चम्बल में मिलती है।
मेज नदी - भीलवाड़ा जिले से निकलकर बूंदी में लाखेरी के निकट चम्बल में मिलती है।
बाणगंगा नदी - इसका उद्गम जयपुर जिले की बैराठ पहाड़ियों से है। यहाँ से यह पूर्व की ओर सवाई माधोपुर जिले और इसके पश्चात् भरतपुर जिले में प्रवाहित होती है, जहाँ इसका जल फैल जाता है।


2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
राजस्थान में प्रवाहित होती हुई अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ है- लूनी, माही और साबरमती
लूनी नदी- लूनी नदी का उद्गम अजमेर का नाग पहाड़ है, तत्पश्चात यह जोधपुर, पाली, बाड़मेंर, जालौर के क्षेत्रौं में लगभग 320 कि.मी. प्रवाहित होती हुई अन्त में कच्छ के रन में चली जाती है। यह केवल वर्षा काल में प्रवाहित होती है। लूनी नदी की यह विशेशता है कि इसका पानी बालोतरा तक मीठा है उसके पश्चात् खारा हो जाता है। लूनी नदी की सहायक नदियाँ है- जवाई, लीलड़ी, मीठड़ी, सूखड़ी- प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय, बाड़ी- प्रथम एवं द्वितीय तथा सागी।
माही नदी- माही नदी मध्य प्रदेश के महू की पहाड़ियों से निकलकर राजस्थान में बाँसवाड़ा जिले में प्रवेश करती है तथा डूँगरपुर-बाँसवाड़ा जिले की सीमा बनाते हुए गुजरात में प्रवेश कर अन्त में खम्बात की खाडी में गिर जाती है। बाँसवाड़ा के निकट इस पर माही-बजाज सागरबाँध बनाया गया हैं। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरेन है।
साबरमती नदी- उदयपुर के दक्षिण-पश्चिमसे निकलकर उदयपुर और सिरोही जिलों में प्रवाहित होकर गुजरात में प्रवेश कर खम्भात की खाड़ी में गिरती है। प्रारम्भ में यह वाकल नदी के नाम से जानी जाती है।


3. अंतः प्रवाहित नदियाँ
राजस्थान में अनेक छोटी नदियाँ इस प्रकार की हैं, जो कुछ दूरी तक बहकर रेत अथवा भूमि में विलीन होजाती हैं, इन्हीं को अंतः प्रवाहित नदियाँ कहते हैं। इस प्रकार की प्रमुख नदियाँ कातली, साबी तथा काकानी हैं।
कातली नदी- सीकर जिले की खण्डेला की पहाड़ियों से निकलती है। इसके पश्चात 100 किमी. दूरी तक सीकर, झुन्झुनू जिलों में बहती हुई रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।
साबी नदी- जयपुर की सेवर की पहाडियों से निकलकर बानासूर, बहरोड, किशनगढ़, मण्डावर एवं तिजारा तहसीलों में बहती हुई हरियाणा में जाकर विलुप्त हो जाती है।
काकानी अथवा काकनेय नदी- जैसलमेर से लगभग 27 किमी. दक्षिण में कोटरी गाँव से निकलकर कुछ किलोमीटर बहने के पश्चात् विलुप्त हो जाती है।
घग्घर नदी- यह एक विशिष्ट नदी है जिसे प्राचीन सरस्वती नदी का अवशेश माना जाता है। यह हरियाणा से निकलकर हनुमानगढ़, गंगानगर सूरतगढ़, अनूपगढ़ से होते हुए उसका जल पाकिस्तान में चला जाता है। इसमें वर्शाकाल में जल आता है जो सर्वत्र फैल जाता है। इस नदी को मृत नदी कहते हैं। वर्तमान में इस नदी के तल को स्थानीय भाशा में नाली कहते हैं।
उक्त अंतः प्रवाहित नदियों के अतिरिक्त बाणगंगा और सांभर झील क्षेत्र की नदियाँ आन्तरिक प्रवाहित श्रेणी की हैं।


राजस्थान की झीलें
राजस्थान में अनेक झीलें हैं, उन्हें दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता है, ये हैं -
() खारे पानी की झीलें एवं
() मीठे पानी की झीलें

इनका संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत है।



() खारे पानी की झीलें
राजस्थान के पश्चिमी मरूस्थली क्षेत्र तथा अंतः प्रवाह वाले क्षत्रों में अनेक खारे पानी की झीलें हैं। इनमें सांभर, डीडवाना, पचपद्रा आरै लूनकरनसर झील प्रमुख हैं।
(1) सांभर झील- जयपुर जिले में जयपुर से लगभग 65कि.मी. पश्चिम में सांभर झील केवल राजस्थान अपितु भारत की प्रमुख खारे पानी की झील है। इस झील के पानी से नमक उत्पादित होता है। झील का कुल क्षेत्रफल लगभग 150 वर्ग किमी. में है।
(2) डीडवाना झील- नागौर जिले में डीडवाना नगर के निकट यह खारे पानी की झील है। इस झील के जल से सोडियम लवण तैयार किया जाता है।
(3) पचपद्रा झील- बाड़मेर जिले के पचपद्रा नामक स्थान पर यह खारे पानी की झील है।
(4) लूनकरनसर झील- बीकानेर से लगभग 80 किमीदूर लूनकरसर में यह झील स्थित है।
उपर्युक्त प्रमुख खारे पानी की झीलों के अतरिक्त कुछ छोटी झीलें फलोदी, कुचामण, कावोद, कछोर, रेवासा
आदि में हैं।
() मीठे पानी की झीलें
राजस्थान प्रदेश के लिये मीठे पानी की झीलों का विशेष महत्व है क्यांेकि राज्य में पानी की कमी हैं आरै मीठे पानी की झीलें पेय जल तथा सीमित रूप में सिंचाई हेतु जल प्रदान करती हैं। राज्य में मीठे पानी की प्राकृतिक झीलें भी है तथा अनेक झीलों का निर्माण बांध द्वारा पानी को रोक कर किया गया। राज्य में मीठे पानी की झीलें अनेक जिलों में स्थित है। यहाँ राज्य की प्रमुख एवं प्रसिद्ध मीठे पानी की झीलों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।
(1) जयसमंद झील- इसका निर्माण वर्श 1685-91 में महाराणा जयसिंह द्वारा गोमती नदी पर बांध बनवाकर कराया गया था। यह झील उदयपुर से 51 किमी. दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसको ढेबर-झीलके नाम से भी पुकारा जाता है। यह राजस्थान की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है, जो पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
(2) राजसमंद झील- इसका निर्माण महाराणा राजसिंह ने सन् 1662 में कराया था। यह झील उदयपुर से 64 किमी दूर राजसमंद जिले में स्थित है। इस झील के किनारे सुन्दर घाट और नौ चैकी है, जहाँ संगमरमर के शिला लेखों पर मेवाड़ का इतिहास संस्कृत में अंकित है।
(3) पिछोला झील- उदयपुर नगर के पश्चिम में पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण पिछोला झील है। इस झील के दो टापुओं पर जग मंदिर और जग निवास नाम के सुन्दर महल बने हुए है।
(4) फतह सागर झील- उदयपुर नगर से सटी हुई फतेह सागर झील, पिछोला झील के उत्तर-पश्चिम में है जिसका निर्माण महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था।
(5) आना सागर झील- अजमेर में स्थित इस झील का निर्माण सम्राट पृथ्वीराज चैहान के पितामह आनाजी ने करवाया था। इसके किनारे एक उद्यान दौलत बागएवं इसके तट पर सुन्दर संगमरमर की छतरियाँ (बारादरी) हैं जो पर्यटकों के आकर्शण का केन्द्र है।
(6) पुष्कर झील- अजमेर से 11 किमी. दूर पर्वतों से आवृत पुष्कर झील है। यह धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व की है तथा पर्यटकों के लिए दर्शनीय है।
(7) सिलीसेढ़ झील- अलवर नगर से लगभग 12 किमी दूर अरावली की पहाड़ियों के मध्य यह सुरम्य झील है।
उपर्युक्त झीलों के अतिरिक्त नवलखा झील (बूंदी), कोलायत झील (कोलायत-बीकानरे ), शैव सागर (डूंगरपुर), गलता एवं रामगढ़ (जयपुर), बालसमंद झील (जोधपुर), कैलाना झील (जोधपुर), भरतपुर का बैरठा बांध तथा धौलपुर का तालाबशाही भी प्रसिद्ध है।


राजस्थान की जलवायु
राजस्थान की जलवायु शुष्क से उप-आर्द मानसूनी जलवायु है। अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं युक्त शुष्क जलवायु है। दूसरी ओर अरावली के पूर्व में अर्द्धशुष्क एवं उप-आर्द्र जलवायु है। अक्षांशीय स्थिति, समुद्र से दूरी, समुद्रतल से ऊँचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों की स्थिति एवं दिशा, वनस्पति आवरण आदि यहाँ की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

राजस्थान की जलवायु की प्रमुख विशेशताएँ हैं :
(1) शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क जलवायु की प्रधानता।
(2) अपर्याप्त एवं अनिश्चित वर्शा।
(3) वर्षा का असमान वितरण।
(4) अधिकांश वर्षा जून से सितम्बर तक।

(5) वर्षा की परिवर्तनशीलता एवं न्यूनता के कारण सूखा एवं अकाल की स्थिति अधिक होना, आदि।
जलवायु का ऋतु प्रारूप

भारतीय जलवायु के समान, राजस्थान की जलवायु का अध्ययन भी ऋतुओं के अनुसार किया जाता है। राज्य की जलवायु का स्वरूप निम्नलिखित तीन ऋतुओं से स्पष्ट होता है-
() ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून)
() वर्षा ऋतु (मध्य जून से सितम्बर)
() शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी)
() ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून)

ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ मार्च से हो जाता है और इस समय सूर्य के उत्तरायण में होने के कारण क्रमिक रूप से तापमान में वृद्धि होने लगती है। मई-जून में सम्पूर्ण राजस्थान में उच्च तापमान हो जाता है। सम्पूर्ण राजस्थान विशेषकर पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाडमेर, बीकानेर, जोधपुर, चूरू आदि में 400 से. से अधिक होता है। पूर्वी राजस्थान के जयपुर, दौसा, अलवर, सीकर तथा अजमरे , टोंक , चित्तौड़गढ़, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, में तापमान 360 से. से 400 से. होता। दक्षिणी अरावली के उच्च भागों में ऊँचाई के कारण तापमान कम होता हैं। हाड़ौती का पठार भी इस समय तपता रहता है और वहाँ तापमान 360 से. से 400 से. के मध्य होता है। इस समय गर्म और धूल भरी आँधियों का प्रकोप होता हैं। शुष्क प्रदेशों में रात्रि तापमान कम हो जाता है। इस समय हवा में नमी कम होती है और सम्पूर्ण राज्य गर्मी की चपेट में होता है।
() वर्षा ऋतु (मध्य जून से सितम्बर)
मध्य जून तक सम्पूर्ण राज्य जब ग्रीष्म से तप्त हो जाता है तो वायु-दाव एवं हवाओं की दिशाओं में परिवर्तन के साथ ही हिन्द महासागर से मानसूनी हवाओं का प्रारम्भ हो जाता हैं राजस्थान में जून के अन्त में अथवा जुलाई के प्रथम सप्ताह में मानसून दक्षिणी और दक्षिणी-पूर्वी तथा पूर्वी राजस्थान में क्रमिक रूप से सक्रीय हो जाता है।
मानसूनी वर्षा राजस्थान का अपेक्षाकृत कम होती हैं क्योंकि -
(1) अरावली पर्वत शृंखला का विस्तार अरब सागर की मानसून शाखा की दिशा के समानान्तर होने के कारण मानसून राज्य में बिना वर्षा के उत्तर की तरफ चला जाता है।
(2) बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाले मानसून की राजस्थान में पहुँचते-पहुँचते आर्द्रता काफी कम हो जाती है।
(3) अरावली पर्वतमाला की ऊँचाई कम होने तथा उस पर वनस्पति कम होने का भी वर्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किन्तु इससे यह तात्पर्य नहीं कि राजस्थान में वर्षा नहीं होती। जून से सितम्बर तक राजस्थान में अधिकांशतः वर्षा होती है।
इसके पश्चिम का भाग जहाँ 40 से.मी. से कम वर्षा होती है। वह मरूस्थली है, दूसरी ओर पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है। राज्य में सर्वाधिक वर्षा आबू पर्वत के निकटवर्ती क्षेत्रों में लगभग 150 से.मी. होती है। कोटा, झालावाड़, बारां, चित्तौड़गढ़, सिरोही में वार्षिक वर्षा का औसत 90 सेमी रहता है। राज्य में न्यूनतम वर्षा वाले जिले जैसलमेर, बाड़मेर, गंगानगर हैं जहाँ वर्षा 10 से 25 से.मी. तक होती है।
() शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी तक)
शीत ऋतु को दो भागों में विभक्त किया जाता है-
(1) मानसून के प्रत्यावर्तन का काल (अक्टूबर से मध्य सितम्बर)
(2) शीत ऋतु (मध्य दिसम्बर से फरवरी तक)
वर्षा ऋतु का समापन एकाएक होकर क्रमिक रूप से होता है और मानसूनी हवाएँ अक्टूबर से वापस लौटने लगती है। इस समय अधिकतम तापमान 300 से 350 से. और न्यूनतम 200 से. तक होता है। यह मानसून के प्रत्यावर्तन अर्थात् लौटने का समय होता है। लौटता मानसून भी कुछ स्थानों पर हल्की वर्षा कर देता है। वास्तविक शीत ऋतु का प्रारम्भ राज्य मे दिसम्बर माह में होता है, क्यांेकि इस समय सूर्य दक्षिणानय में होता है। उत्तरी-पश्चिमी ठण्डी हवाएँ पूरे राज्य में चलने लगती हैं। इस समय पश्चिमी शीतोष्ण चक्रवात भी प्रदेश में आते है जिनसे कुछ वर्षा हो जाती है, इस वर्षा को मावठकहते है। यह वर्षा रबी की फसल के लिये वरदान होती है। जनवरी के माह में शीतकाल पूर्णता पर होता है। सम्पूर्ण प्रदेश में तापमान 50 से 150 से. होता है। चूरू, फलोदी, गंगानगर में तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। इस समय बाडमेर, कोटा, बूंदी तथा दक्षिणी सवाई माधोपुर जिलों में तापमान 100 से अधिक होता है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजस्थान का भौतिक पर्यावरण विशिष्ट है। राज्य के भौतिक विभागों में उच्चावच एवं जलवायु की अत्यधिक विविधता है। यहाँ के भौतिक पर्यावरण ने सदैव से आर्थिक एवं सामाजिक स्वरूप् को प्रभावित किया है और वर्तमान में भी कर रहा है। राज्य की विकास योजनाओं पर भी इनका प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
पड़ोसी राज्य
राजस्थान की सीमा से लगने वाले पड़ोसी राज्य के जिले
राजस्थान के जिले जो पड़ोसी राज्य से लगते है
गुजरात 
कच्छ, बनासकाण्ठा, साबरकांठा, पंचमहल व दाहोद
बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर बांसवाड़ा
मध्यप्रदेश
झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, श्योपुर, शिवपुरी, शाजापुर, नीमच, मुरैना, राजगढ़ व गुना
बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़, कोटा, झालावाड़, बारां, सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर
उत्तरप्रदेश
मथुरा व आगरा
धौलपुरभरतपुर
हरियाणा
भिवानी, फतेहाबाद, सिरसा, हिसार, महेंद्रगड़, मेवात व रेवाड़ी
हनुमानगढ़, चुरु, झुंझुनू, सीकर, जयपुर, अलवर व भरतपुर
पंजाब
मुक्तसर व फिरोजपुर
हनुमानगढ़ व श्री गंगानगर

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