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Sunday 14 July 2013

Rajasthan: Revolt of 1857

राजस्थान : सन् 1857


राजस्थान : सन् 1857 का विद्रोह 
राजस्थान में विद्रोह का घटनाक्रम


क्र.स.
विद्रोहकास्थान
विद्रोहकीतारीख
1
नसीराबाद
28 मई 1857
2
नीमच
3 जून 1857
3
एरिनपुरा
21 अगस्त 1857
4
आउवा
अगस्त 1857
5
देवली छावनी
जून 1857
6
भरतपुर
31 मई 1857
7
अलवर
11 जूलाई 1857
8
धौलपुर
अक्टूबर 1857
9
टोंक
जून 1857
10
कोटा
15 अक्टूबर 1857
11
अजमेर की केंद्रीय जेल
9 अगस्त 1857
12
जोधपुर लीजियन
8 सितम्बर 1857


1857 के समय राजस्थान के कई राजपूत ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ थे। ये ब्रितानियों के शासन से संतुष्ट नहीं थे जिससे इनके मन में सरकार के खिलाफ़ क्रांति के बीज उत्पन्न होने लगे। इन लोगों के साथ आम जनता भी शामिल हो गई। राजस्थान के कई इलाकों में इस विद्रोह की ज्वाला भड़की थी जिनमें निम्न नाम उल्लेखनीय हैं।

नसीराबाद 
सबसे पहले नसीराबाद में इस विद्रोह की शुरू आत हुई थी। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि ब्रिटिश सरकार ने अजमेर की 15वीं बंग़ाल इन्फ़ेन्ट्री को नसीराबाद भेज दिया था क्योंकि सरकार को इस पर विश्‍वास नहीं था। सरकार के इस निर्णय से सभी सैनिक नाराज हो गये थे और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ क्रांति का आगाज कर दिया। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार ने बम्बई के सैनिकों को नसीराबाद में बुलवाया और पूरी सेना की जंाच पड़ताल करने को कहा। ब्रिटिश सरकार ने नसीराबाद में कई तोपे तैयार करवाई। इससे भी नसीराबाद के सैनिक नाराज हो गये और उन्होंने विद्रोह कर दिया। सेना ने कई ब्रितानियों को मौत के घाट उतार दिया साथ ही साथ उनकी सम्पत्ति को भी नष्ट कर दिया। इन सैनिकों के साथ अन्य लोग भी शामिल हो गये।

नीमच 
नसीराबाद की घटना की खबर मिलते ही जून 1857 को नीमच के विद्रोहियों ने कई ब्रितानियों को मौत के घाट उतार दिया। फ़लस्वरू प ब्रितानियों ने भी बदला लेने की योजना बनाई। उन्होंने जून को नीमच पर अपना अधिकार कर लिया। बाद में विद्रोही राजस्थान के दूसरे इलाकों की तरफ़ बढ़ने लगे।

जोधपुर 
यहाँ के कुछ लोग राजा तख्त सिंह के शासन से रुष्ट थे। जिसके कारण एक दिन यहाँ के सैनिकों ने इनके खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। उनके साथ आउवा के ब्रिटिश विरोधी कुशाल सिंह भी थे। 
कुशाल सिंह का सामना करने के लिये लेफ़्टिनेंट हीथकोट के साथ जोधपुर की सेना आई थी लेकिन कुशाल सिंह ने इन को परास्त कर दिया। बाद में ब्रितानी सेना ने आउवा के किले पर आक्रमण किया लेकिन उनको भी हार का मुँह देखना पड़ा लेकिन ब्रिगेडियर होम्स उस पराजय का बदला लेना चाहता था इसलिये उसने आउवा पर आक्रमण किया अब कुशाल सिंह ने किले को छोड़ दिया और सलुम्बर चले गये। कुछ दिनों बाद ब्रितानियों ने आउवा पर अधिकार कर लिया और वहा आतंक फ़ैलाया 

मेवाड़ 
मेवाड़ के सामंत ब्रितानियों व महाराणा से नाराज थे। इन सामन्तों में आपसी फ़ूट भी थी । महाराणा ने मेवाड़ के सामन्तों को ब्रितानियों की सहायता करने की आज्ञा दी। इसी समय सलुम्बर के रावत केसरी सिंह ने उदयपुर के महाराणा को चेतावनी दी कि यदि आठ दिन में उनके परम्पराग़त अधिकार को स्वीकार न किया गया तो वह उनके प्रतिद्वंदी को मेवाड़ का शासक बना देंगे। सलुम्बर के रावत केसरी सिंह ने आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह को अपने यहा यहा शरण दी। इसी समय तांत्या टोपे ने राजपूताने की ओर कूच किया। 1859 में नरवर के मान सिंह ने उसके साथ धोखा किया और उसे गिरफ़्तार कर लिया। यद्यपि सामंतों ने प्रत्यक्ष रू प से ब्रिटिश सरकार का विद्रोह नहीं किया परन्तु विद्रोहियों को शरण देकर इस क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कोटा 
ब्रिटिश अधिकारी मेजर बर्टन ने कोटा के महाराजा को बताया यहां के दो चार ब्रिटिश विरोधी अधिकारियों को ब्रिटिश सरकार को सौंप देना चाहिये। लेकिन महाराजा ने इस काम में असमर्थता जताई तो ब्रितानियों ने महाराजा पर आरोप लगाया कि वह विद्रोहियों से मिले हुए हैं। इस बात की खबर मिलते ही सैनिकों ने मेजर बर्टन को मार डाला। विद्रोहियों ने राजा के महल को घेर लियाफ़िर राजा ने करौली के शासक से सैनिक सहायता मांगी। करौली के शासक ने सहयोग किया और विद्रोहियों को महल के पीछे खदेड़ा। इसी समय जनरल एच.जी.राबर्टस अपनी सेना के साथ चम्बल नदी के किनारे पहँुचा। उसे देखकर विद्रोही कोटा से भाग गये।

राज्य के अन्य क्षेत्रों में विद्रोह 
इस विद्रोह में अलवर के कई नेताओ ने हिस्सा लिया। जयपुर में उस्मान खां और सादुल्ला खां ने विद्रोह कर दिया। टोंक में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया ओर नीमच के विद्रोहियों को टोंक आने का निमंत्रण दिया। इन्होने टोंक के नवाब का घेरा डाल कर उनसे बकाया वेतन वसूल किया। इसी तरह बीकानेर के शासक ने नाना साहब को सहायता का आश्‍वासन दिया था। और तांत्या टोपे की सहायता के लिये द्स हजार घुड़सवार सैनिक भेजे। यद्यपि राजस्थान के अधिकांश शासक पूरे विद्रोह काल में ब्रितानियों के प्रति वफ़ादार रहेफ़िर भी विद्रोहियों के दबाव के कारण उन्हें यत्र-तत्र विद्रोहियों को समर्थन प्रदान करना पड़ा।


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